इस झिल्ली में विकार उत्पन्न होने पर इसमें शोथ हो जाता है जिसे प्लूरिसी नामक रोग होना कहते हैं।
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सूखी खाँसी होने के कारणों में एक्यूट ब्रोंकाइटिस, फेरिनजाइटिस, प्लूरिसी, सायनस का संक्रमण तथा टीबी की प्रारम्भिक अवस्था का होना है।
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बीमार व्यक्तियों को भी छींक आती है और यदि वे प्लूरिसी अथवा कमर के दर्द से पीड़ित हों तो उन्हें छींक अत्यधिक कष्टप्रद महसूस होती है।
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यह विशेषकर उन रोगियों के लिए लाभदायक है जिन्हें प्लूरिसी के बाद यह रोग हो जाता है और छाती में सूई गड़ने जैसा दर्द होता है।
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यह मल-मूत्र की रुकावट को दूर करता है और पेट दर्द, पीठ दर्द, कमर दर्द, पसली का दर्द तथा प्लूरिसी आदि रोगों को खत्म करता है।
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उसमें खाँसी, क्षय प्लूरिसी, दमा आदि के रोग कीटाणु अपने लिए आसानी से जगह बना लेते हैं और घर बनाकर मजबूती के साथ अपनी वंश वृद्धि करते रहते हैं।
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आंत्रिक ज्वर (टायफाइड), खसरा, इंफ्लुएंजा, निमोनिया, ब्रोंकाइटिस (श्वासनली की सूजन), फुफ्फुसावरण शोथ (प्लूरिसी) आदि रोगों में भी खांसी उत्पन्न होती है।
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इनको अधिकतर जीभ के रोग, प्लूरिसी, निमोनिया, जैसे फ़ेफ़डों के रोग, सर्दी, जुकाम, ब्रोम्काइटिस, आईसीनोफ़ीलिया, और सांस वाले रोग इनको होने की संभावना रहती है
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प्लूरिसी (Pleurisy) नामक रोग में फुफ्फुसावरण में सूजन हो जाती है जिसके कारण सीरमी द्रव, (इसे प्लूरल फ्ल्यूड भी कहते हैं) की मात्रा ज्यादा होने के कारण प्लूरल गुहा अधिक बढ़ जाती है।
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पके हुए फोड़े, पक्षाघात, अंगों का सुन्न होना, छाती और पेड़ू की सूजन, पुरानी प्लूरिसी, शराब के सेवन से हुई बेहोशी, विषैली गैसों के कारण उत्पन्न बेहोशी, पानी में डूबने से बेहोशी, पेट का फोड़ा, स्नायु का दर्द तथा प्लीहा आदि रोगों में गर्म-ठंडे सेंक से विशेष लाभ मिलता है।