मैंने कहा-जब जीवन के अनमोल ३६५ दिन १-१ कर के चुक जाते हैं हर बार हाथ खाली ही रह जाते हैं उम्मीदों की कलियाँ खिलने से रह जाती हैं श्वास खज़ाना कुछ और कम हो जाता है जीवन भी जब कुछ और सिकुड़ जाता है तब किसी अनजानी अनचीन्ही आशा में लोग फिर से गिनती की शुरुआत करते हैं वो ही नया साल कहलाता है उसने असमंजस से पूछा-इसमें नया क्या है?
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मैंने कहा-जब जीवन के अनमोल ३ ६ ५ दिन १-१ कर के चुक जाते हैं हर बार हाथ खाली ही रह जाते हैं उम्मीदों की कलियाँ खिलने से रह जाती हैं श्वास खज़ाना कुछ और कम हो जाता है जीवन भी जब कुछ और सिकुड़ जाता है तब किसी अनजानी अनचीन्ही आशा में लोग फिर से गिनती की शुरुआत करते हैं वो ही नया साल कहलाता है उसने असमंजस से पूछा-इसमें नया क्या है?