' बच्चन' ने अपने जीवन के इस नये मोड़ पर फिर आत्म-साक्षात्कार किया, मन को समझाते हुए पूछा,“जो बसे हैं, वे उजड़ते हैं, प्रकृति के जड़ नियम से, पर किसी उजड़े हुए को फिर से बसाना कब मना है?[1]”
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लोग कहते हैं जमाना बदल गया है रहा करते थे जहां वो आशियाना बदल गया है तोडकर सीमाएं जग की प्रेम अब स् वछंद हुआ मूक बनकर देखता हूं, अंदाज पुराना बदल गया है बर्बाद कर दे भला, तूफान किसी का घर बार तूफां में उजडे घर को, फिर से बसाना बदल गया है