“ बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ, याद आती है चौका, बासन, चिमटा, फुंकनी जैसी माँ ; बांध के खुर्री खाट के ऊपर हर आहात पर कान धरे, मुर्गे की आवाज़ पे खुलती घर की कुण्डी जैसी माँ ; ” शुक्रिया,
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हम को तो माँ का वो चेहरा याद है फूंका करती थी अंगेठी को वो फुंकनी भरा हाथ याद है प्यार से मिलती थी गर्माहट और नरमाहट वो प्यार भारी गोद याद है सर्दियों कि धूप जैसा माँ का वो चेहरा याद है साईकिल से गिरी थी जब पहली बार मेरे दर्द में, उनका आँसू भरा चेहरा याद