/ / इन कविताओं के भीतर हम एक ऐसे संवेदनशील व् यक्ति या औसत नागरिक को देख सकते हैं जो समय और समाज की विसंगतियों का जिम् मेदार साक्षात् कार करते हुए मनुष् यता के सभी रंगों और संवेदनाओं को बचा रखना चाहता है.
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नतालिया एवं मार्सल एग्यूरो, फोटो: द हिन्दू खुली खिड़कियों और बादलों के लिए प्रार्थना: जैक एग्यूरो (अनुवाद: मनोज पटेल) प्रभु, मेरे लिए एक जगह बचा रखना स्वर्ग में किसी बादल पर इन्डियन, अश्वेत, यहूदी, आयरलैंड और इटली के लोगों के साथ पुर्तगाली और तमाम एशियाई, स्पेनी, अरबी लोगों के साथ.
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जाने वालों से राब्ता रखना दोस्तो रस्म-ए-फातिहा रखना घर की तामीर चाहे जैसी हो इसमें रोने की कुछ जगह रखना मस्जिदें हैं नमाजियों के लिए अपने घर में कहीं खुदा रखना जिस्म में फैलने लगा है शहर अपनी तन्हाईयाँ बचा रखना उमर करने को है पचास को पार कौन है किस जगह पता रखना रचना …