सामाजिक-अनुकूलन (social conditioning) ने शायद आपको यकीन दिला दिया है कि अपने बैंक खाते में एक निश्चित रकम बनाए रखने के लिए, अपने लोन की किश्तों का भुगतान सही समय पर करने के लिए, या फिर किसी और की जरूरतें पूरी करने के लिए, अपनी खुशियों की बलि चढाना ही जीने का एक सही तरीका है | बचपन से हमें यही तो सिखाया जाता है कि आपको जिममेदार बनना है और एक अच्छी सी स्थायी (stable) नौकरी हासिल करनी है |