दिल् ली की मोनिका अपनी सहेली को हमेशा यही सलाह देती है कि देर शाम दिल् ली की उसी बस में चढ़ना, जहां कम से कम 15 लोग सवार हों।
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मेरा ऐसे लोगों से एक ही सवाल है कि क्या वाकई उनकी सांसें चल रहीं थीं? रास्ते पर अकेली खड़ी लड़की को राह चलता कोई भी बाइक या साइकिल सवार अश्लील बातें सुनाकर चला जाता है, खचाखच भरी बस में चढ़ना तो लड़कियों के लिए जैसे सबसे बड़ा पाप है।
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पहली बात: शुरूआती गलती और एक कदम आगे की गलती यानि शुरूआती दो कदम पीडिता और पीडिता के पुरुष मित्र द्वारा उठाए गए! जोकि पूरी तरह से गलत और किसी के लिए भी अस्वीकार्य थी! जबकि बस ड्राइवर के साथ बस में सवार सभी युवक शराब के नशे में थी, ऐसे समय में इस बस में चढ़ना कहां तक उचित था?