इन पेशियों के ये नाम हैं: बहि: प्रकोष्ठमणिबंध प्रसारणी दीर्घ तथा लघु (extensor carpi radialis longus and brevis), कनिष्ठा प्रसारणी (ext.
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पश्च त्रिकोण का शिखर ऊपर कर्णमूल के नीचे और आधार नीचे जत्रुक पर है तथा अंत: भजा उर कर्णमूलिका की बहि:धरा और बहि: या पार्श्व भुजा (
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पश्च त्रिकोण का शिखर ऊपर कर्णमूल के नीचे और आधार नीचे जत्रुक पर है तथा अंत: भजा उर कर्णमूलिका की बहि:धरा और बहि: या पार्श्व भुजा (trapezius) पेशी की बहि:धारा से बनती है।
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' ' सूते सूत मिलाये कोरी में '' '' कोरी '' शब्द तो आध्यात्म परक है और बहि: साक्ष्य के आधार पर कबीर को जुलाहा कुल में उद्भूत हुआ ही माना जा सकता है।
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इनके नाम ये हैं: वर्तुल अवताननी, दीर्घकरतला, बहि: और अंत: मणिबंध आकुचनी (flexor carpi radialis and ulnaris) पेशियाँ, उत्तर अंगुलि आकुंचनी (flexor digitorum sublimis), नितल अंगुलि आकुचनी, (flexor digitorum profundus), दीर्घा अंगुष्ठ आकुंचनी (flexor pollicis longus) और चतुरस्त्र अवताननी (pronator quadratus), चतुष्कोणकार पेशी, जो मणिबंध के पास अंत: