हालाँकि इनमें से कुछ की चलताऊ चर्चा संविधान के चौथे भाग में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के रूप में की गयी है, परन्तु ये नीति निर्देशक तत्व राज्य के लिए विधिक रूप से बाध्यताकारी नहीं हैं और नागरिकों को इनका उल्लंघन होने की सूरत में न्यायालय जाने का भी कोई अधिकार नहीं है।
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आज बहुत कम लोगों को ही इस तथ्य की जानकारी है कि जो संविधान भारतीय लोकतन्त्र (जनवाद) का “पवित्र” आधार ग्रन्थ है, जो हर नागरिक के लिए अनुल्लंघ्य और बाध्यताकारी है, उसका निर्माण भारतीय जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों ने नहीं किया था, न ही चुने हुए प्रतिनिधियों के किसी निकाय द्वारा उसे पारित ही किया गया था।