मैं मानो प्रभात में बालुकामय भूमि पर अंकित पदचिह्नों को देखकर, निशीथ की नीरवता में उधर से गयी हुई अभिसारिका की कल्पना कर रहा हूँ!
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तब राजस्थान और सिंध की भूमि ऊपर उठने से जहॉं एक ओर सॉभर जैसी खारे पानी की झील बच गई वहॉं दूसरी ओर एक बालुकामय खंड निकल आया।
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तब राजस् थान और सिंध की भूमि ऊपर उठने से जहॉं एक ओर सॉभर जैसी खारे पानी की झील बच गई वहॉं दूसरी ओर एक बालुकामय खंड निकल आया।
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बारहवें वर्ष के चैत्र शुक्ल पूर्णिमा की आधी रात तुंगभद्रा के बालुकामय तट पर बासन्ती बयार के झोंके के बीच में, वन्य पुष्पों के पराग की मधुरता के बीच वेंकटरमण रामभक्त हनुमान का ध्यान करते हुए गुरूगीता का पाठ करने लगे।