और किस्सा आगे जाता है कि इस ऐतिहासिक भीमभोज के बाद, बिना खाने का बिल चुकता किये, बाल्ज़ाक महाराज हाथ डुलाते हुए रेस्तरां के बाहर चले आये!
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मार्क्स-एंगेल्स ने जो कुछ भी कहा बाल्ज़ाक के बारे में, और लेनिन ने जो लिखा तोल्सतोय के बारे में वह इस सूत्र के पक्ष में खड़ा होता है.
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बाल्ज़ाक की एक मनोवैज्ञानिक रचना, ” अज्ञात महान रचना ” का, जिसमें से जोला ने बहुत कुछ चुरा लिया था, उन पर बड़ा प्रभाव पड़ा क्योंकि कुछ हद तक उसमें उनके भावों का वर्णन था ।
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लेकिन जैसा क ि बाल्ज़ाक के शब्दों में कहें कि जन क्रांतियों के सबसे बड़े दुश्मन वे होते हैं जो खुद उनके बीच से पैदा होते हैं, यह रुस में पूँजीवाद की पुनरस्थापना के बाद बिल्कुल सही साबित हुआ।
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पूरे जीवन अपने लिए खुद का बनाया हुआ यही उनका वर्किंग रेजिमेन रहा, एक मर्तबा तो-खुद बाल्ज़ाक ने लिखा है-कि पूरे अड़तालीस घंटे वो कलम-घिसाई में आंखें फोड़ते रहे, बस तीनेक घंटे का एक ब्रेक लिया कि एक झपकी ले लें!
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मार्क्स बाल्ज़ाक को समकालीन सामाजिक जीवन का इतिहासकार ही नहीं बल्कि ऐसे पात्रों का भविष्यदर्शी रचयिता समझते थे जो लुई फिलिप के राय में केवल अधूरे रूप में थे और बाल्ज़ाक की मृत्यु के बाद तीसरे नेपोलियन के समय में पूर्ण रूप से विकसित हुए ।
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मार्क्स बाल्ज़ाक को समकालीन सामाजिक जीवन का इतिहासकार ही नहीं बल्कि ऐसे पात्रों का भविष्यदर्शी रचयिता समझते थे जो लुई फिलिप के राय में केवल अधूरे रूप में थे और बाल्ज़ाक की मृत्यु के बाद तीसरे नेपोलियन के समय में पूर्ण रूप से विकसित हुए ।
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फ़िल्म का मुख्य किरदार अंटोनी अपने फ्लैट के पिछवाड़े में बने एक छोटे से कमरे में महान फ्रेंच लेखक बाल्ज़ाक को अपनी भक्ति भावना प्रदर्शित करने के लिए उसके पोस्टर के सामने मोमबत्ती जलाता है और फिर घर में आग लगने जैसी स्थिति पैदा हो जाती है.
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कान खुदवाना, गोड़ दबवाना, गरदन के रोंओं पे हाथ फिरवाना है, तुमसे, ओह, कितने तो! धूल के बादल और सीलन-सागर में बाल्ज़ाक व बाख़ का ब बचाये रखना और पेत्रार्क व पिरमोद गंगुली का नेह दुलराये रखना, नाक से नाक सटाये तुम्हें तुमसे छुपाये रखना है, आह, कितने तो!
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कालिदास, तुलसी दास, कबीर, महर्षि वेदव्यास, शेक्सपियर, कीट्स, शेल्ली, मोपासाँ, बाल्ज़ाक, ओ हेनरी, सार्त्रे, सिमों द बूवाँ, कुरोसावा … बस करता हूँ … इन सभी की उम्र 100 साल से लेकर 500 साल होगी और ये आज भी ज़िंदा हैं.