हमें भी अपने भीतर के रस को आस-पास बिखराना है, ध्यान से यह सहज ही होता है.
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खैर, आज हम यहां पर बहुत दार्शनिक अंदाज में इस बात को बिखराना नहीं चाहते, और मुद्दे की बात पर आना चाहते हैं।
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कृ में मूलतः रचना, बनाना, नष्ट करना, छितराना, बिखराना, फैलाना जैसे भाव है जिनमें सृष्टि विस्तार का संकेत निहित है।
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विकिरः, विकिरण या विकीर्ण शब्द इससे ही बने हैं और बिखराव, बिखरना, बखरना या बिखराना जैसे शब्द इसी विकिरण के रूपांतर हैं।
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मसलन, सुभद्राकुमारी चौहान की, ' यह मुरझाया हुआ फूल है / इसका हृदय दुखाना मत / स्वयं बिखरने वाली इसकी पंखुड़ियाँ बिखराना म त।
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युगों युगों से उस बुढ़िया ने जग को अपना वंशज माना उनकी खुशियों की खातिर ही जारी है आटा बिखराना अब तो समझो हे जगवालो बुढिया यह सब करती क्यों है।
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मीडिया का काम इस तरह चीजों को फैलाना, बिखराना होता गया है कि अब लगता ही नहीं है कि ऐसा समय भी आयेगा जब सच को कहने और सुनने का दौर आयेगा.
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धुल जाता है सारा वातावरण राजपथ-सा स्वच्छ निर्मल आकाश कर देता है शुरू बनाना बिखराना इन्द्रधनुषी रंगों और उनके अलग-अलग शेड्स की झंडियाँ लाल, पीली, हरी, नीली, नारंगी और बैंगनी और..... और.....
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मनुष्य सभ्य और सुसंस्कृत मनुष्य है और संस्कृति स्वयं सामाजिक संबंधों की मर्यादाओं का परिगठन करती है-संस्कृति की जो लम्बी परम्परा के संघर्ष से जन्मी है, इसको विखंडित करना, तोडना समाज को बिखराना है यह काम हमारी समकालीन संस्कृति कर रही है।
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रुग्ण बाग में पंछी घायल रक्त वमन जब बहता विभत्स में शृंगार रसों की लुकाछिपी खेलाई विद्रोही दिल रोता रहता दर्द बहुत ही सहता फिर भी लफ्जों को निचोड़ कर बदबू ही फैलाई खाद समझ नाले से मैंने कीचड़ तो बिखराया किन्तु हाय! गन्ध फूलों की बिखराना बाकी है।