मध्यम वर्ग की बढ़ती संख्या और बीमा योग्य युवा जनसंख्या जैसे भौगोलिक कारकों और सुरक्षा एवं रिटायरमेंट प्लानिंग की आवश्यकता के प्रति बढ़ती जागरूकता से भी भारत में जीवन बीमा के विकास को बढ़ावा मिलेगा।
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बीमाकृत व्यक्ति, उसी अथवा किसी अन्य क्षेत्र में, किसी अन्य नियोजकों के पास उसके द्वारा बीमा योग्य रोजगार में कर्मचारी के रूप में की गई सेवा अवधि पर ध्यान दिए बिना इस भत्ते का हकदार होगा।
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यहाँ यह सवाल स्वाभाविक रूप् से उठता है कि छोटे कस्बों / शहरों के अपने दफ्तर बन्द कर ये बीमा कम्पनियाँ, बीमा योग्य अधिकाधिक लोगों का बीमा कैसे कर पाएँगी? इस काम के लिए दिन-ब-दिन नए शाखा कार्यालय खोलने पड़ते हैं!
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बीमा योग्य रोजगार के पहले दिन से यह स्वीकार्य है कि बीमित व्यक्ति बीमारी के कारण शारीरिक कष्ट, अस्थायी या स्थायी अक्षमता आदि की स्थिति मे स्वयं तथा अपने आश्रितो के लिए पूर्ण चिकित्सा देखभाल के अतिरिक्त नगद हितलाभ पाने के भी हकदार होंगे ।
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किन्तु ज्यों-ज्यों समय बीतता जा रहा है, इन दावों की हवा निकलने लगी है और यह बात तेजी से सामने आने लगी है कि बीमा योग्य लोगों का बीमा करने और लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने में निजी बीमा कम्पनियों की कोई दिलचस्पी नहीं है।
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अधिनियम की धारा 2 (8) के अन्तर्गत परिभाषित “रोजगार चोट” को परिभाषित किया गया है कि एक कर्मचारी की व्यक्तिगत चोट जो दुर्घटना या व्यावसायिक रोग होने के कारण रोजगार के दौरान हुई हो, बीमा योग्य रोजगार में होने के कारण, चाहे घटित दुर्घटना या व्यावसायिक रोग भारत की प्रादेशिक सीमा के अन्दर या बाहर हुआ है ।