समत्वबुद्धियोग यह बताता है कि जितेन्द्रिय मानव ही स्थिर बुद्धि सम्पन्न हो सकता है और स्थिर बुद्धि सम्पन्न व्यक्ति ही परमानन्द को प्राप्त कर सकता है।
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एक सामान्य मनुष्य से लेकर बुद्धि सम्पन्न व्यक्ति के लिए यह निश्चित कर पाना कठिन होता जा रहा है कि वह कौन-से साधन को अपनाएं, स्वीकार करे।
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भावना सम्पन्न, बुद्धि सम्पन्न, कला सम्पन्न, धन सम्पन्न, सत्ता सम्पन्न, सभी अपनी-अपनी विशेषताओं को ऋषियों के अनुशासन से संस्कारित करके प्रयुक्त करें तो उनका कुछ घटने वाला नहीं, सबको अतिरिक्त श्रेय-सौभाग्य मिलने ही वाला है।
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शुद्ध वैदिक ज्ञान मार्ग की खोज करने वाले विरक्त, जिज्ञासु मुमुक्षु पुरुषों के लिए यही सर्वप्रधान उपकार माना जा सकता है, क्योंकि भगवान् शंकर जैसे लोकोत्तर बुद्धि सम्पन्न पुरुष को छोडकर दूसरे किसी के लिए तत्कालीन दार्शनिकों के युक्ति जाल का खण्उन करना सरल नहीं था।
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यजुर्वेद में मेधा बुद्धि हासिल करने के लिए परमात्मा से प्रार्थना की गई है-या मेधांदेवगणा: पितरश्चोपासते।तयामामद्यमेधयाग्नेमेधाविनंकुरु। हे, परमात्मा! जिस तरह से देव और पितर मेधा बुद्धि के लिए परमात्मा से प्रार्थना करते हैं, जिसके जरिए सत्य ज्ञान का उदय होता है, ऐसे ही हम भी मेधा बुद्धि सम्पन्न बनें।