उसी सोच में डूबे थे कि बेटी ने पिता से चिंतित होने का कारण पूछ लिया और ग्लानि और पश्चाताप में डूबे रजनीकान्त अपने द्वारा अपनी पत्नी को समझ न पाने, उसे बेकदर करने की बात बताते चले गये।
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और जब कभी आराम के पलों में याद आए पीछे छूटी अनगिनत अनमोल घड़ियों की तो फ़िर ढूँढने पड़ते हैं वही सिगरेट के बेकदर, इधर उधर ठोकर खाते पन्ने किस्मत अच्छी कि कुछ अभी भी सलामत है नही तो वक्त ने अच्छे अच्छों को धूल चटाया है कुछ के निशान बाकी हैं तो कईओं को पूरा मिटाया है
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' ' गुजरे हुए जमाने की काबिले कदर यादगारो! तुमको याद कर-करके हम कहां तक रोएं और कहां तक विलाप करें जमाने के बेकदर हाथों की बदौलत तुम अब मिट गये और मिटते चले जाते हो, जमीन तुमको खा गई और उनको भी खा गई जो तुम्हारे जानने वाले थे, यहां तक कि तुम्हारा निशान तो निशान तुम्हारा नाम तक भी मिट गया!
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रहकर महलों और और बड़े मकानों में नहीं चैन से रह पाते बड़े लोग लग जाते हैं उनको राजरोग अपने पसीने से नहाया अपनी ही कमाई का खाया गरीब जीवन गुजारता चैन से नहीं सह पाते ऊंचे लोग यह सब तो कभी शहर की रौनक के नाम पर कभी तरक्की के पाने की दाम पर उजाड़ देते हैं उनके आशियाने तिनके-तिनके घर हो जाता दाने-दाने बेहयाई होती है हमेशा बेकदर
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इस फिल्म की सफलता के पीछे लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का संगीत एक मजबूत पक्ष रहा | एक गाना ' मेरे दो अनमोल रतन' पूरी फिल्म में कई जगह टुकड़ों में इस्तेमाल की गई| दूसरा गाना 'वन टू का फोर' पर गली गली के टपोरी फिदा थे | एक गाना 'तेरा नाम लिया' कर्णप्रिय हैं वहीं ओ रामजी एवं बेकदर गानों में सरोज ख़ान के निर्देशन में माधुरी दीक्षित का नृत्य गानों को बेहद खूबसूरत बना गया |
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राहे-फितना* लम्हे कुछ बिता जाती है ज़िन्दगी फ़िर राहे-आम आ जाती है खौल के जिसने सुर्ख किया था लाल रंग का खूँ आग वो बुजदिल पानी में समा जाती है यूँ सियासत को देने तानों की कमी नहीं बारी इंतेखाब* की फ़िर सच बता जाती है तर्ज़* भी रिश्वत खाने का इस मुल्क में ऐसा है यास* मौत की फ़र्ज़ को खिला जाती है यूँ तो फ़िक्र न रिश्तों के निभाने की है कारे-ज़माना* बचने सब निभा जाती है बेकदर वो बेबस मौतें कुछ सिखा जाती है औकात वो मेरी मुझको ही दिखा जाती है-राहे-फितना =