तीसरा पेंच यह कि क्या मूर्खता ऐसी ही बेकार की चीज़ है और होशियारी बहुत बड़ी बात? मूर्खता को छुपाना चाहिए या होशियारी को?
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बच्चे का जिस्म जैसे जैसे बढ़ता है उसकी प्रिमिटिव स्ट्रीक उसके मुकाबले में महीन होती जाती है और एक बेकार की चीज़ लगने लगती है।
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(वैसे दुश्मन कोई नहीं है सब हमारे बनाये हुए हदें हैं)साथ ही अब तक असहमत इस पर भी हूँ कि चर्चा बेकार की चीज़ है...
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यह आत्महंता प्रवृति अगर किसी संवेदनशील कलाकार में घर कर जाती है तो इसके लिए वह समाज ज़िम्मेदार है जो एक कलाकार को बेकार की चीज़ में तब्दील कर देता है.
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ब्रुक्स को हाल ही में घर से मिले पार्सल में प्राप्त चीज़ों में शायद यह सब से बेकार की चीज़ मिली होगी, पर हम ने इस को सही काम में लगा दिया।
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देश-काल-परिस्थितियां उनके लिये फ़िज़ूल हैं, सामाजिक ढांचे कुछ नहीं हैं, जनता का पक्ष कोई चीज़ नहीं है, आर्थिक आधार बेकार की चीज़ है, धर्म का अर्थ है जीवन से कटा हुआ जातिगत कर्मकां ड.
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तीसरा पेंच यह कि क्या मूर्खता ऐसी ही बेकार की चीज़ है और होशियारी बहुत बड़ी बात? मूर्खता को छुपाना चाहिए या होशियारी को? हमारे पिता जी हमें डाँटते थे तो यही कहते थे कि हमारे सामने ज़्यादा होशियारी दिखाई तो ठीक कर देंगे।
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अब गाइड (देवानंद की ऐतिहासिक महत्व की फ़िल्म को छोड़ दें तो) के नाम से ही आम तौर पर लोग ये सोचने लगते हैं कि वे तो सस्ती क़िस्म की, उबाऊ और बेकार की चीज़ होती है, जिसमें सतही बातों का तो विस्तार से उल्लेख किया गया होता है, मगर गंभीर गूढ़ बातों का संदर्भ ही नहीं होता है.
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उन के नाम से बेचने में दोहरा फ़ायदा! और बाद में सब की सब बेकार की चीज़ हो कर रह जाती है-नालियों में, कूड़े के ढेरं पर गंदगी में और पाँवों के नीचे जूते-चप्पलों से कुचली जाती हुई! और तो और गले में टाँग लेते है पेन्डेन्ट में ढाल कर! क्या करें बेचारे.