लेकिन जिस तरह इन कंपनियों ने अपने आईपीओ की प्राइस बैंड यानी निवेशकों को अपने शेयर बेचने की कीमत रखी वह सही नहीं थी, नतीजन निवेशकों ने इन् हें खारिज कर दिया।
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हकीकत यह है कि आज भी सौ पेज की सजिल्द किताब का लगत मूल्य दस से बारह रुपये ही आता है, मगर इनको बेचने की कीमत दो सौ से तान सौ रूपये रखा जाता है.
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पेट्रोलियम प्लानिंग ऐंड अनालिसिस सेल के मुताबिक, तेल उत्पाद बेचने की कीमत और देश की तीन तेल कंपनियों (इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड) द्वारा ग्राहकों से प्राप्त पैसे के बीच 31 मार्च को खत्म हुए वर्ष में 1.4 ट्रिलियन रूपए का अंतर था।
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यह कई कारणों से किया जाता है जैसे brand-sanctity के चलते, inventory pile-up से बचने के लिए, स्थान खाली करने के लिए, इनको बेचने की कीमत व समय, बेचने के काम में manpower लगाने के बजाय उत्पादन में इसके प्रयोग आदि को देखते हुए...इसी तरह के कई अन्य कारण हैं.
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यह कई कारणों से किया जाता है जैसे brand-sanctity के चलते, inventory pile-up से बचने के लिए, स्थान खाली करने के लिए, इनको बेचने की कीमत व समय, बेचने के काम में manpower लगाने के बजाय उत्पादन में इसके प्रयोग आदि को देखते हु ए... इसी तरह के कई अन्य कारण हैं.
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यही कारण है कि बाज़ार में किसी भी सामान को बेचने की कीमत तय करने का अधिकार तो उसे बनाने और बेचने वालों के हाथ में है, लेकिन उसे खरीदने वाले हम ग्राहकों को यह अधिकार नहीं है कि हम उनसे यह पूछ सकें कि दरअसल उसे बनाने में खर्चा कितना आया है, या लागत कितनी आयी है?