ब्रैम स्टोकर के उपन्यास “ ड्रेकुला ” में, रक्त आधान की विभिन्न घटनाएं जानबूझ कर दी गई थीं. यह पुस्तक 1897 में प्रकाशित किया गया.
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ब्रैम स्टोकर के ड्रैकुला (1897) की तरह लोकप्रिय उपन्यास में पिशाच को चित्रित करने की प्रचेष्टा इतनी प्रभावशाली या इतनी पूर्ण विकसित किसी की भी नहीं थी.
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[5] हालांकि ब्रैम स्टोकर के सन् 1897 में प्रकाशित उपन्यास ड्रैकुला को सर्वोत्तम उपन्यास के रूप में याद किया जाता है जिसने पिशाच कथा-साहित्य की पृष्ठभूमि तैयार की.
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स्त्री के सौंदर्य के आगे वह मात्रा पागल नहीं होता बल्कि उसका ऐसा कायांतरण होता है जो ' डॉ. जैकिल एंड मिस्टर हाइड', 'मेसिए वेर्दू', मार्की द साद और ब्रैम स्टोकर का स्मरण दिलाता है।
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वंशावली विशेषज्ञों के अनुसार यह बच्चा दूर से ड्रैकुला से संबंधित होगा, जोकि 15वीं सदी के प्रिंस थे और जिन्होंने ब्रैम स्टोकर के प्रसिद्ध वैम्पायर की रचना के लिए प्रेरणा का काम किया था।
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ब्रैम स्टोकर जैसे मित्रों ने इस अनुमान के आधार पर उनकी “मनोवैज्ञानिक” पाठ्य सामग्री का बचाव किया कि मैकबेथ ने नाटक की शुरुआत से पहले ही डंकन को मारने का सपना देखा देखा था.
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[42] ब्रैम स्टोकर जैसे मित्रों ने इस अनुमान के आधार पर उनकी “मनोवैज्ञानिक” पाठ्य सामग्री का बचाव किया कि मैकबेथ ने नाटक की शुरुआत से पहले ही डंकन को मारने का सपना देखा देखा था.
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और कोई भी मछली पकड़ने के व्हिटबी का बंदरगाह से ऊपर रूमानी खंडहर मठ के खड़े चरणों या इसके गोथिक अनुभव को नहीं भूल सकता, जब यह ब्रैम स्टोकर के ड्रेकुला के लिए प्रेरणादायक पृष्ठभूमि था।
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हालांकि यह लक्षण सार्वभौमिक नहीं है (यूनानी राइकोलाकस/टाइम्पैनियस प्रतिविम्ब और परछाई दोनों के लिए सक्षम थे) इसका प्रयोग ब्रैम स्टोकर ने ड्रैकुला में किया था और बाद में यह परवर्ती रचनाकारों तथा फिल्मनिर्माताओं के साथ भी लोकप्रिय बनी रही.
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बड़ा सवाल है कि आखिर ये अंधा युध्द कब खत्म होगा? ऐसा लग रहा है जैसे अंग्रेजी उपान्यासकार ब्रैम स्टोकर का काल्पनिक पात्र डैªकुला बस्तर में अपनी रक्तपिपासु इच्छा के साथ पूरे वेग से वर्चस्व कायम कर रहा है।