इधर-उधर की मीठी बातें होने के बाद स्वामीजी ने कहा-क्योंजी, भगवान कृष्ण में तुम्हारी प्रगाढ भक्ति है या नहीं! शिष्य ने कहा-कैसे बताऊं? मैं जिसे भक्ति समझता हूं, शायद वह भंडैती या आत्मप्रतारणा हो! सत्यानन्द ने सन्तुष्ट होकर कहा-ठीक है, जिससे दिन-प्रतिदिन भक्ति का विकास हो, ऐसी ही कोशिश करना।