हे महालक्षि्म! तुम्हें मेरा प्रणाम है॥8॥ जो मनुष्य भक्ति युक्त होकर इस महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र का सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राज्यवैभव को प्राप्त कर सकता है॥9॥ जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है, उसके बडे-बडे पापों का नाश हो जाता है।
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भावार्थ-पूर्ण परमात्मा जब मानव शरीर धारण कर पृथ्वी लोक पर आता है उस समय अन्य वृद्ध रूप धारण करके पूर्व जन्म के भक्ति युक्त भक्तों के पास तथा नए मनुष्यों को नए भक्ति संस्कार उत्पन्न करने के लिए वृद्ध रूप में सफेद दाढ़ी युक्त होकर जंगल तथा ग्राम में वसे भक्तों के पास विद्युत जैसी तीव्रता से जाता है अर्थात् जब चाहे जहाँ प्रकट हो जाता है।
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भक्ति युक्त प्रेम भाव हो या संपूर्ण समर्पित अनंत आध्यात्म हो, या फिर अल्हड़ सी शोख़ सी यौवन की छुपी हुई भावाभिव्यक्ति हो, लता के पारलौकिक गले से वे रस उत्पत्ति कर हमें नवाज़ते थे ऐसी ऐसी सुरीली बंदिशों से कि हम उनके सुर सागर में डूबते तैरते बहने लगते है, और कहने लगते हैं कि कोई ना रोको दिल की उड़ान को, आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फ़िर मरने का इरादा हैं.