अमेरिका का नाम सुनते ही भड़क जाना कोई अच्छी आदत नहीं है, जैसे मार्क्सवाद या साम्यवाद का नाम सुनते ही भड़क जाना एक बीमार दिमाग का लक्षण है।
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अमेरिका का नाम सुनते ही भड़क जाना कोई अच्छी आदत नहीं है, जैसे मार्क्सवाद या साम्यवाद का नाम सुनते ही भड़क जाना एक बीमार दिमाग का लक्षण है।
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मुझे तो लगता है कि उनका लिखना जितना गलत है, हमारा उन्हें पढ़ना, उससे भड़क जाना और भड़क कर उन्हें प्रचारित करना और भी ज्यादा गलत है.
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कायदे से तो ऐसे मौके पर उसे भड़क जाना चाहिए था, लेकिन वो पास आई और एक टफ लुक देने की कोशिश करते करते वो खुद ही हँस पड़ी..
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ऐसा भी संभव है कि ज्यादातर लोग गुलजार साब को ही दोषी ठहरायें और कहें कि कि ऐसे चेतन भगत को टोका जाना गलत था पर उनका भड़क जाना एक सूक्ष्म किस्म के भ्रष्टाचार के खिलाफ एक प्रयास है ।
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ऐसा भी संभव है कि ज्यादातर लोग गुलजार साब को ही दोषी ठहरायें और कहें कि कि ऐसे चेतन भगत को टोका जाना गलत था पर उनका भड़क जाना एक सूक्ष्म किस्म के भ्रष्टाचार के खिलाफ एक प्रयास है ।
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लड़की चाहे राजी हो या न हो, उसके प्रेम में पागल रहना, उस पर अपना एकाधिकार मानना, प्रेम प्रदर्शन कर उसे लगातार परेशान करते रहना और फिर एक दिन उसके इंकार से आहत हो इतना भड़क जाना कि अपने कथित प्रेम की ही जान ले लेना! यहां तक कि अपनी जान भी गवां देना! क्या इसके पीछे अपनी चाहत को किसी भी कीमत पर जबरिया पाने की दबंगई वाली मानसिकता नहीं है?