| “ भभकना ” कविता हमें आगाह कराती है कि व्यवस्था का यह दायित्व है कि वह सबका ख्याल रखे और किसी को भी नजरंदाज न करे, | पुरवाई को बहुत बधाई, इन शानदार कविताओ को प्रस्तुत करने के लिए |
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जिन बातों पर इन्हें अपनी सम्पूर्ण तीव्रता से भड़कना (भड़कना ही नहीं, भभकना) चाहिए, उन बातों पर इनमें सिहरन भी नहीं होती और जिन बातों की अनदेखी करने की बुद्धिमत्ता बरतनी चाहिए, उन पर ये आग लगा देती हैं।
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दरअसल लालटेन का भभकना जलने और बुझने के बीच की वह प्रक्रिया है जिसके लिए कुछ भाषाओं ने तो शब्द तक नहीं गढ़े फिर भी घटित हो गयी वह प्रक्रिया जो शब्दों की मोहताज नहीं होती कभी जो गढ़ लेती है खुद ही अपनी भाषा जो ईजाद कर लेती है खुद ही अपनी परिभाषा