भवई, तमाशा, भाँड़, नौटंकी, यक्षगान, नाचा लोकनाट्य के विविध रूप हैं.
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1. अपनी कहानी का आरंभ ही उन्होंने इस ढंग से किया है, जैसे लखनऊ के भाँड़
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अवधि की भाँड़ शैली पर भी संस्कृति भाण-परंपरा की विनोदशीलता के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता।
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अवधि की भाँड़ शैली पर भी संस्कृति भाण-परंपरा की विनोदशीलता के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता।
15.
कुछ देर पहले तक हम प्रोफेसर की पदवी पर आसीन थे, अब भाँड़ समझे जा रहे थे।
16.
चलो, अब रात को थाने में सन्नाटा तो नहीं पसरेगा, इस भाँड़ की कविताओं का रस लिया जाएगा...
17.
जब जमीर ने लेंठड़ा से यह कहा तो वह और जोर से चिल्लाया, “ भाँड़ में गई तुम्हारी बस्ती और उसकी शांति! अरे आकर देखो तो सही बाहर क्या है? ”
18.
भाँड़, राजा के दरबार में तरह-तरह के करतब दिखा कर राजा को खुश करते थे और नगर-नगर, गाँव-गाँव जाकर, गीत गा-गा कर राजा की प्रशंसा किया करते थे।
19.
वे लिखते हैं-देखी तुम्हरी कासी लोगों देखी तुम्हरी कासी जहाँ विराजें विश्वनाथ विश्वेश्वर जी अविनासी घाट जाएँ तो गंगा पुत्तर नोचे दे गलफाँसी आधी कासी भाँड़ भंडेरिया लुच्चे और सन्यासी।
20.
जान बचाने वाली धोबिन में बची जान तो दिखायी दी, बचाने की विधि स्मरण नहीं रही-यह तो पेटूपना ही है, जिसमें उदर भरे थाली की सजावट जाय चूल्हे भाँड़-