भारतीय कालीन उद्योग से वर्तमान में 15-20 लाख मजदूरों की रोजी-रोटी चल रही है, किन्तु सिंथेटिक कालीनों का बढ़ता आयात हमारे मजदूरों के लिये बहुत बडे खतरे का संकेत है।
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अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ के अध्यक्ष रवि पटौदिया ने कहा कि बुनकरों का संकट होने के चलते यहाँ आने वाले बुनकरों को काम मिलेगा और उनके परिवार के लोगों की हरसंभव सहायता होंगी।
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देश कि बिभिन्न सरकारी गैर सरकारी संथान अपनी साख बढ़ाने के लिए फर्जी आंकडे दे रही एस ही एक मामला भारतीय कालीन संवर्धन परिषद ने दिया जिसका विश्लेषण करने अप्पको खुद हैरान रह जायेगे
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अखिल भारतीय कालीन निर्माता एसोसिएशन के अध्यक्ष रवि पटौदिया ने बताया कि यहां से कालीन विदेश भेजने का सबसे अच्छा समय जुलाई और अगस्त होता है लेकिन तब जब अप्रैल, मई और जून तीनाें महीना धूप मिले।
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मुश्किल दौर से गुजर रहे भारतीय कालीन उद्योग को संकट से उबारने की कवायद के तहत इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कार्पेट टेक्नोलॉजी (आईआईसीटी) तथा न्यूजीलैंड की संस्था ‘एजी रिसर्च' ने कालीन निर्माण प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने का निर्णय लिया है।
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भारतीय कालीन का अमेरिका सबसे बड़ा कद्रदान है लेकिन पर भदोही का कालीन उद्योग पिछले कई वर्षों से अपनी बदहाली पर सिर्फ आंसू बहा है, यह उद्योग सरकारी उपेक्षाओ के साथ-साथ बुनियादी सुविधाओं की कमी का भी दंश झेल रहा है।
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भारतीय कालीन मे लगे उन मजदूरों कि संख्या और कारीगरों संख्या और उनको दी जाने वाली मजदूरी का चार्ट दिया जा रहा है जिसे कालीन निर्यात संवर्धन परिषद बनाया है जिसमे बताया गया है कि इस उद्योग के 40000 हजार करोड़ के कुल व्यापार मे पचास फीसदी...
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भदोही स्थित कालीन निर्यात संवद्र्घन परिषद् के सहायक निदेशक विजय कुमार सिन्हा ने बताया कि वित्त वर्ष 2010-11 के दौरान जहां भारतीय कालीन का निर्यात करीब 2992 करोड़ रुपये का था वह 2011-12 में 80 फीसदी बढ़कर 4583. 80 करोड़ रुपये तक जा पहुंचा।