वे इसी तथ्य को अपने एक निबन्ध में एशिया खण्डे संस्कृत भाषा प्रसार और प्रभाव (पृष्ठ सं 0-116 निबन्ध संग्रह, सांस्कृतिकी-भाग-2) में भी चर्चित करते हैं इसी प्रकार सैकड़ों संस्कृत नाम चीनी भाषा में प्रचलित होते हुए भी आत्मगोपन करके स्थित है।
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मैं अपनी ३ ७ साल की सर्विस लाइफ़ में ये नहीं समझ पाया कि ये हिन्दी अधिकारी जो लगभग एक लाख रुपया महिना वेतन लेते हैं वो हिन्दी विकाश के लिए काम क्या करते हैं? देश के तमाम केन्द्रीय कार्यालयों, सार्वजनिक उपक्रमों, शिक्षा संस्थानों, अकादमिक संस्थानों और एनजीओ के मार्फ़त हिन्दी भाषा प्रसार के नाम पर, हर साल सरकारी कोष से अरबों-खरबों रुपया बर्बाद किया जाता है, जबकि देश की अधिसंख्य जनता की आजीविका और बाज़ार की आवश्यकता ने हिन्दी को आज मजबूत स्थति में स्व्यम्वेव खड़ा कर दिया है.