बाल के पीछे भागना, नदी में भीगना, दूसरों को भिगाना, खाना, पीना, संगीत, कितना कु छ........ दूर से मैं इन सभी को मस्ती करते व खिलखिलाते देखती रही और अनायास ही अपने हिन्दुस्तानी बुजुर्ग याद आ गए.........
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हमें बताना नहीं आता ग़म के साथ ए हसीना हमें जीना नहीं आता मोहब्बत तो हम भी करते हैं, मगर ठुकराए इज़हार पर पीना हमें नहीं आता मयख़ाने की शिरक़त हम अक्सर किया करते हैं, मगर बस्ल ए इंतज़ार में, आंखे भिगाना हमें नहीं आता क़ॉलेज के गेट पर हो खड़े, राह तेर
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मनोज भाईइतना भिगाना ठीक नहींलोटे में से पेंदा हटाना ठीक नहींआप सम्मान दे रहो होउन्हें इतना लुढ़कवाना ठीक नहींटटपूंजिया सम्मान के लिए मंथनइन थनों में मन ही नहीं हैइनके लिए काहे मंथनमुझे तो लग रहा हैयह खालिश हकीकत हैइसका व्यंग्य विधा सेनहीं होगा कोई संबंध परंतुजीवित व्यक्तियों और घटनाओं सेपूरी नाते-रिश्तेदारी दिखलाई दे रही हैआप कहते हो तोमहज इत्तेफाक समझ लेते हैंपर वे समझदार क्या करेंगे???