(हांलाकि ऐसे समय में अपनी किसी आने वाली किताब की ऐसी भूमिका लिखना सत्ता और महत्वाकांक्षाओं के उन्माद में ग्रस्त सत्ता-समाज के ' कौरव-कोहराम ' या ' कुरु-कलरव ' के बीच एक विगलित-विचलित हो चुके अकेले लेखक की ' फुसफुसाहट ' से अधिक कुछ नहीं है, फिर भी इसका अगला बाकी हिस्सा कल या परसों आप यहां देखेंगे।