आईएसएमए के मानद सचिव भारत रावल ने बताया कि सॉल्ट पैन के लीज का किराया देने के अलावा नमक उत्पादकों को जरूरत की अन्य भूमि का किराया, जिला पंचायत कर, एजूकेशन सेस, पंचायत उपकर, रॉयल्टी, सेस और घाट शुल्क भी देना पड़ता है।
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शासन ने सरकार को स्पष्ट बता दिया था कि संस्था को जमीन तभी दी जा सकती है, जब संस्था 30 रु. प्रतिमाह की दर से भूमि का किराया 1.25 करोड़ रुपए प्रतिमाह चुकाए या फिर और सामाजिक संस्था होने के कारण यदि 10 प्रतिशत छूट दी जाए तो 12,50,286 प्रतिमाह का किराया बनता है।
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प्रस्तुत केस में ऐसा कुछ नहीं है, 1955 में लीज प्रदान की गई है जो 1965 में समाप्त हुई है और दौरान लीज अपीलार्थीगण विवादित भूमि का किराया राज्य सरकार को अदा करते रहे हैं और राज्य सरकार इनको किरायेदार ही मान कर चलती रही है और कभी भी अपीलार्थी-वादीगण ने अपने किरायेदार का बींतंबजमत त्यागा नहीं है।