डॉ. अभिषेक यादव ने रामविलास शर्मा की ऐतिहासिक भौतिकवाद और द्वन्द्वात्मक भौतिक वाद के सिद्धान्तों से पूरी परम् परा पर प्रकाश डाला।
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भौतिक वाद का प्रसार तीव्र गति से होता है, किन्तु ठाकुर की दया का लाभ धीरे-धीरे लेकिन लगातार होता है।
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भौतिक वाद बाहरी व्यवहार की वस्तु है, श्री श्री ठाकुर की भावधारा देश की महान् संस्कृति को जीवन में उतारने का एक आन्तरिक रास्ता है।
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दुर्भाग्य, भौतिक वाद के अनुयायी माँ-बाप को जीवन की भागदौड़ से इतना समय कहाँ कि वे धैर्य से किशोर की जिज्ञासा शांत कर सकें ।
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इसीलिए शायद हमारे शास्त्रों पुरानों और गुरुजनों ने कहा कि भौतिक वाद का सुख क्षणभंगुर होता है और वाकई कितने ही ऐसे आनन्द है जिसका मजा आप अकेलेपन में नहीं उठा सकते।
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इस अवसर पर सम्पूर्ण विश्व के देशों की सरकारों को, सामजिक संगठनों को भौतिक वाद की इस भाग दौड़ में बिगड़ते मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीरता से विचार करना आवश्यक हो गया है।
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आज एक तरफ जहां भौतिक वाद हमें चिढाता है कि, ‘ हमारे पास क्या है ', वहीं दूसरी ओर श्री श्री ठाकुर की भावधारा में आकर हम जान पाए हंै कि, ‘ हम क्या हैं ' ।
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15. भारतीय संस्कृति की मूल चेतना ‘संस्कृत' के महत्व से युवा पीढ़ी को अधिकाधिक जोड़ने की दिशा में प्रभावी एवं सार्थक प्रयास जिससे अति भौतिक वाद की अंधी दौड़ की चकाचौंध में युवा वर्ग भारतीय सांस्कृतिक विरासत से बिल्कुल विमुख न हो जाय।
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इसीलिए तो भगवान गणेश ने ब्रह्माण्ड की परिक्रमा करने की बजाय अपने माता पिता शिव-पार्वती की परिक्रमा करके प्रथम पूज्य होने का अधिकार हांसिल कर लिया था, किन्तु आज के इस भौतिक वाद (कलयुग) में बढ़ते एकल परिवार के सिद्धान्त तथा आने वाली पीढ़ी की सोच में परिवर्तन के चलते ऐसा देखने को नही मिल रहा है।
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आचार्य महेशचंद्र शर्मा नें उनके विगत दिनों आयोजित ‘ स् मृतियॉं प्रेम साइमन ' के आयोजन में अपने भावाद्गार प्रकट करते हुए कहा था ‘ भौतिक वाद के युग में असुरक्षा से घिरा मानव, परिवार एवं समाज से लेना और सिर्फ लेना ही जानता है किन् तु बिरले लोग ऐसे होते हैं जो हर किसी को हमेशा देते रहते हैं।