दरअसल, ग्राम्य जीवन एवं नगरीय वातावरण के तादात्म्य से समाज में विषमता, विद्रूपता, विसंगति, शोषण-उत्पीडन, दुःख-दर्द, मूल्यहीनता, सांस्कृतिक पतन, मर्यादाओं का अंत, मंदी की मार, विवश बुढापा, बाजारवाद, वैश्विक अवधारणा, भूमंडलीकरण का दुष्प्रभाव, भाषा-प्रान्त-सम्प्रदाय आदि की जो भ्रांतिमूलक अवधारणाएँ उत्पन्न होती हैं, उन्हीं से आहत होकर नवगीतकारों की सर्जनाएँ गति प्राप्त करती हैं।