हम स्पष् ट देखते हैं कि ये सिद्धान्त पक्षपात और अन्याय से परिपूर्ण हैं और यहि कारण है कि समय समय पर इन का विरोध होता रहा है विशिष् ठ एंव विश् वामित्र का युद्ध, परशुराम एवं क्षत्रियों की लड़ाईयां, शंबूक का वध, बुद्ध एंव महावीर का मतप्रचार आदि इन सिद्धान्तों के विरूद्ध खुले विद्रोह कहे जा सकते हैं।