इस समय अगर पुराने गांधीवादी मुहावरे का प्रयोग करें तो “पैसे का राज” है. और वह भी निरुंकुश. हमारा सारा समाज, अगर मतसंग्रह किया जाये तो, एक स्वर से यही कहेगा कि पैसा ही ताक़त, ख़ुशहाली और उन्नति का स्रोत है.
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इस समय अगर पुराने गांधीवादी मुहावरे का प्रयोग करें तो “पैसे का राज” है. और वह भी निरुंकुश. हमारा सारा समाज, अगर मतसंग्रह किया जाये तो, एक स्वर से यही कहेगा कि पैसा ही ताक़त, ख़ुशहाली और उन्नति का स्रोत है.
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लेकिन यह बैअत इस हैसियत से न थी कि वह आप की ख़िलाफ़त को मिनजानिब अल्लाह (अल्लाह की तरफ़ से) और आप को इमामे मुफ़तरिज़ुत्ताअत (इमाम जिस की आज्ञाओं का पालन अनिवार्य हो) समझ रहे हों बल्कि उन्हीं के क़रार दाद: उसूल के मातहत (उन्हीं द्वारा पारित नियमों के अन्तर्गत) थी जिसे जमहूरी व शुराई क़िस्म (प्रजातांत्रिक एवं मतसंग्रह पद्धति) के नामों से याद किया जाता था।
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सैनिटेशन जिसे पिछले दिनों एक आनलाइन पोल में विगत डेढ़ सौ से अधिक साल के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण चिकित्सकीय प्रगति कहा गया था, उसके बारे में हमारे जैसे मुल्क की गहरी उपेक्षा क्यों? दिलचस्प है कि उपरोक्त मतसंग्रह में 11 हजार लोगों की राय ली गयी थी, जिसने एण्टीबायोटिक्स, डीएनए संरचना और मौखिल पुनर्जलीकरण तकनीक (ओरल रिहायडेªशन थेरेपी) आदि सभी को सैनिटेशन की तुलना में कम वोट मिले थे।