अच्छा अंश चुना है आपने अनुराग जी, निर्मल का होना गद्य में आत्मा के मद्दिम ताप के होने जैसा था, मगर अब सिर्फ उनके लिख शब्द ही हैं हमारे साथ, इस अनन्य लेखक को हमारी श्रद्धांजलि...
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उधर होलिका को जब यमलोक के कैदखाने की कोठरी की तरफ ले जाया जा रहा था तो एक और लंबित मामले का कैदी, जिससे जनता के वर्ग विशेष की भावनाएँ जुड़ी हुई थीं, मद्दिम सी आवाज में ये गीत गा रहा था।
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सिर्फ़ पुराने घुटे हुए राजनेता और धर्मगुरू ही इन मुद्दो को हवा देते है, आपसे बड़ी मद्दिम सी आशा के साथ अपील कर सकता हू की नये भारत के मिज़ाज को समझिए जो अभी देश की बागडोर संभाल तो सकता है मगर अभी सत्ता से दूर है और ये जात-पात्त, धर्म, भाषा के “ ख़तरनाक ” खेलो के दिन तभी तक है 5-अच्छा है आप नास्तिक हो, आस्तिक होते तो इतने ज़हरीले ब्लॉग लिखने के बाद उपरवाला भी आपकी मदद नही कर पाता..