नीडल बायोप्सी के नैदानिक निष्कर्षों में पर्याप्त स्ट्रोमल कोशिकाएं शामिल हैं जो सम्पूर्ण चूषण में नग्न द्विध्रुवी नाभिकों के रूप में दिखाई देते हैं जो प्रचुर मात्रा में एक समान आकार वाली एपिथेलियल कोशिकाओं की परतें हैं जो आम तौर पर या तो बारहसिंगे की सींग की तरह की पद्धति में या किसी मधुकोष पद्धति में व्यवस्थित होती हैं.
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ओ मधुमास मेरे जीवन के...... ओ मधुमास मेरे जीवन केक्यू इतने सकुचे सकुचे होशिशिर गया फिर भी सहमे होकहा बसंती हवा रह गयी.क्या दिन आये नहीं फाग केजीवन की इन कलिकाओ मेंमेरे मन की आशाओं मेकब पराग भर पावोगे तुम,शिशिर-समीरण से बच करकेअधर मेरे अतृप्त बडे हैंखाली सब मधुकोष पड़े हैंकौन ले गया छ्ल कर मुझसे मधु-मय पल जीवन के
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विकल व्योम से मत पूछो तेरे वो अश्रुकोष कहां हैं उपवन पुष्प से मत पूछो तेरे वो मधुकोष कहां हैं शुष्क हृदय के अंधकक्ष से मत पूछो आनंद कहां है लीन नयन से मत पूछो पलकों का स्पंद कहां है कालचक्र से मत पूछो उल्लास का वो प्रारब्ध कहां है प्रेमपंथ में भटके पथिक से मत पूछो संयोग कहां है गगन के इस अंतस से न पूछो उसका शब्दहीन उच्छवास कहां है
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कम मोम का उपयोग कर अधिक जगह समा लेने के लिए मधुकोष के कोन कैसे रखने चाहिए, यह सवाल हमारे युग के गणितज्ञ कलन-शास्त्र (कलकुलस) की सहायता से सुलझा सके हैं, जबकि उसका जवाब मधुमक्खियों को तो वेदकाल से ही मालूम था! तो भी मधुमक्खियों के जीवन और कार्य का जो वर्णन प्रथम शर्तो के रोमन कवि वर्जिल ने किया था, उसका अक्षर-अक्षर आज की मधुमक्खियों पर भी लागू होता है।
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विकल व् योम से मत पूछो तेरे वो अश्रुकोष कहां हैं उपवन पुष् प से मत पूछो तेरे वो मधुकोष कहां हैं शुष् क हृदय के अंधकक्ष से मत पूछो आनंद कहां है लीन नयन से मत पूछो पलकों का स् पंद कहां है कालचक्र से मत पूछो उल् लास का वो प्रारब् ध कहां है प्रेमपंथ में भटके पथिक से मत पूछो संयोग कहां है गगन के इस अंतस से न पूछो उसका शब् दहीन उच् छवास कहां है