| 11. | मनः शक्ति की विकृति और विनाश एक है
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| 12. | न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः ॥१-३०॥
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| 13. | तपस्वियों को मनः स्थैर्य का मर्म सदा सिखलाये॥
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| 14. | आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किंचिदपि चिन्तयेत् ॥६-२५॥
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| 15. | मनः प्रत्यक् चित्ते सविधमविधायात्त-मरुतः । प्रहृष्यद्रोमाणः प्रमद-सलिलोत्सङ्गति-दृशः ।।
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| 16. | मनः स्वस्थता की मनुष्य में सहज-अपेक्षा रहती है।
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| 17. | (१ २) मनः अस्ति स मानवः
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| 18. | चंचलं हि मनः कृष्णं प्रमाधि बलवद दृठम् ।
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| 19. | न च शकनोम्यवस्थातुम् भ्रमतीव च में मनः / /
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| 20. | निकुम्भ सिर उसकी मनः स्थिति को समझते हैं.
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