17-2-2010 सानिध्य ओम राघव देखते परिणाम भले बुरे, सतसंग और कुसंग के हो जाती वह मिट्टी भी सुगंधित टूट पड़ता फूल गुलाब जिसपर, वृक्ष चंदन की समीपता से झाड़ झंकाड़ जंगल के हो उठते सुगंधित जड़ जिन्हें हम समझते सानिध्य भले का उन्हें भी मनभावना करता, जैसे सान्निध्य संगत वैसा आचरण व्यवहार बनता परिणाम उत्तम सानिध्य उत्तम ला सकेगा, गलत संगत असंगत परिणा का वाहक बनेगा उपासना कृत्य आध्यात्म का लाता और समीपता परमात्मा की ईश्वर परमात्मा का सानिध्य नहीं आज का सनातन है, रहेगा सदा ही सानिध्य ही समीपता का पर्याय है।