-अज्ञात मनुष्य का पतन कार्य की अधिकता से नहीं वरन कार्य की अनियमतता से होता है |
12.
धनतृष्णा मनुष्य का पतन कर देती है और अन्त में इससे ही वह विनाश को प्राप्त होता है ।
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धनतृष्णा मनुष्य का पतन कर देती है और अन्त में इससे ही वह विनाश को प्राप्त होता है ।
14.
परधर्म का पालन करने से मनुष्य का पतन हो जाता है भले ही वह उसके स्बधर्म से श्रेष्ठ हो ।
15.
भगवान् का द्रव्य, देवद्रव्य या धर्म का द्रव्य अपने लिये उपयोग में लेने से मनुष्य का पतन और सर्वनाश हो जाता है।
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भगवान् का द्रव्य, देवद्रव्य या धर्म का द्रव्य अपने लिये उपयोग में लेने से मनुष्य का पतन और सर्वनाश हो जाता है।
17.
विहितस्याननुष्ठानात् निन्दितस्य च सेवनात्, अनिग्रहाच्चेन्द्रियाणाम् नरः पतनमृच्छति | ”-धर्मानुरूप कर्मों का त्याग तथा निन्दनीय कर्मों के करने से मनुष्य का पतन होता है | धर्मपरायण व्यक्ति से ईश्वर स्वयं ही स्नेह करता है |
18.
महाभारत में यह उल्लेख किया गया है कि कभी भी काम, भय एवं लोभ के वशीभूत होकर अथवा जीवन की रक्षा मात्र के लिए धर्म का परित्याग नहीं करना चाहिए, क्योंकि धर्म त्यागने वाले मनुष्य का पतन अवश्यंभावी है।
19.
किन्तु जब प्राण कमजोर पड़ जाता है तो मन का रुख इन्द्रियों की तरफ हो जाता है, और इन्द्रियों पर मन यानि सारथि का कोई कब्ज़ा नहीं होता जिससे प्राण पुण्य-मयी दैवीय प्रवृतियों की रक्षा नहीं कर माता परिणाम होता है मनुष्य का पतन,..
20.
मनुष्य का उत्थान व पतन कैसे होता है जब मनुष्य अपने पूर्वजों और पितृगण व बुजुर्गों को बुरा भला कह कर गालियां देने लगता है, तो समझिये उसने पतन के रास्ते पर पहला कदम रख दिया ऐसे मनुष्य का पतन सुनिश्चित है, और जब मनुष्य स्वयं अपने आप में खोट देखने लगता है स्वयं को बुरा भला कह कर गालियां देना शुरू कर देता है तो समझिये उसने उन्नति व उत्थान के रास्ते पर पहला कदम रख दिया है, ऐसे मनुष्य की उन्नति व उत्थान सुनिश्पित है-स्वामी विवेकानन्द