कहना होगा कि भदौरिया जी की अनेकों गीत पंक्तियाँ सूक्तियों का काम करती हैं और गीति काव्य कही मनोरमता के अनूठे, विक्षलण चित्र प्रस्तुत करती हैं।
12.
“कोई रूप न ही मनोरमता,.... हम उसे इच्छा चाहिए कि कोई सुंदरता” वहाँ था बस के रूप में (यशायाह 53:2), मातृत्व के बारे में खुलकर विजयी या
13.
रवीन्द्रनाथ टैगोर के चित्रों में भौतिकता और ऐंद्रियता की विशिष्टताएं अमूर्त सौंदर्य के उन्हीं साहित्यिक सूत्रों के अधीन हैं जो स्वयं उनके काव्य को मनोरमता और भव्यता की कल्पनाओं से परिपुष्ट करती हैं
14.
हरा रंग एक ठंडापन, गहरा नीला रंग अपशकुन, हल्का नीला रंग मनोरमता की भावना, बैंगनी रंग विषाद व् उदासी की भावना तथा हल्का पीला रंग आनंद और चमकती धूप जैसे ख़ुशी और प्रसन्नता की भावना पैदा कर सकता है ।
15.
यह चित्रण जहाँ एक ओर निसर्ग की शोभा को अपनी पूरी मनोरमता के साथ अभिव्यक्त करता है वहीं दूसरी ओर कृष्ण के इस शोभा के बीच गोपियों के साथ मुग्ध होकर नृत्य करने की अनुपम भंगिमा को भी दरशाता है।
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हरा रंग एक ठंडापन, गहरा नीला रंग अपशकुन, हल्का नीला रंग मनोरमता की भावना, बैंगनी रंग विषाद व् उदासी की भावना तथा हल्का पीला रंग आनंद और चमकती धूप जैसे ख़ुशी और प्रसन्नता की भावना पैदा कर सकता है ।
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वह एक निविदा पौधे के रूप में उसके सामने बड़े होते जाएंगे, और एक सूखी जमीन की जड़ के रूप में 2 के लिए: वह कोई रूप नहीं, और न ही मनोरमता है, और हम उसे देखेंगे, जब हम उसे इच्छा चाहिए कि कोई सौंदर्य है.