यह लघु लहरों का विलास है कलानाथ जिसमें खिंचआता कवि का भाव तो इतना ही है कि बाल्यावस्था में यह सारी पृथ्वी कितनी सुंदर और दीप्तिपूर्ण दिखाई देती है, पर व्यंजना बड़े ही मनोहर ढंग से हुई है।
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उत्तर में कहना होगा कि-हिंदी भाषा में जो संवहन तथा सम्प्रेषण की क्षमता है वह अन्य भाषाओं की अपेक्षा निराली है! वह एक सहज,सरल तथा कोमल मधुर भाषा ही नहीं बल्कि अन्य भाषाओं के शब्दों को हृदयंगम करने कि सहिष्णुता भी रखती हैं!इसकी मधुर संगीतात्मक ध्वनियाँ चित्त को मनोहर ढंग से आकर्षित करती है!