| 11. | प्राणवायु उर स्थल में आहत होकर मन्द्र स्वर को उत्पन्न करता है।
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| 12. | प्राणवायु उर स्थल में आहत होकर मन्द्र स्वर को उत्पन्न करता है।
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| 13. | उर स्थान के मन्द्र स्वर को अनुदात्त या प्रात: सवन कहते हैं।
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| 14. | प्राचीन काल के गायकों में मन्द्र और अतिमन्द्र गायन का चलन था।
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| 15. | मन्द्र स्वरों के नीचे एक बिन्दी लगा कर उन्हें मन्द्र बताया जाता है।
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| 16. | मन्द्र स्वरों के नीचे एक बिन्दी लगा कर उन्हें मन्द्र बताया जाता है।
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| 17. | १) बहुधा इस राग में आलाप तान मन्द्र निषाद से प्रारम्भ करते हैं।
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| 18. | उर स्थान के मन्द्र स्वर को अनुदात्त या प्रात: सवन कहते हैं।
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| 19. | मन्द्र और मध्य सप्तक के प्रतह्म हिस्से में होती है (पूर्वांग प्रधान राग)।
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| 20. | इस राग का चलन मुख्यत: मन्द्र और मध्य सप्तक के प्रतह्म हिस्से म...
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