यह सत्य ही है कि कान्तिमान, बलिष्ठ रूद्रदेव के पुत्र वे मरुद्गण, मरु भूमि मे भी अवात स्थिति से वर्षा करते हैं।
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इन सैलानियों को मरु भूमि के पुरा वैभव व लोक साँस्कृतिक विलक्षणताओं से परिचित कराने के लिए स्थानीय जागरुक बाशिन्दों ने ऐतिहासिक प्रयास किए हैं।
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मिहं कृण्वन्त्यवाताम् ॥७॥ यह सत्य ही है कि कान्तिमान, बलिष्ठ रूद्रदेव के पुत्र वे मरुद्गण, मरु भूमि मे भी अवात स्थिति से वर्षा करते हैं।
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-डॉ. दीपक आचार्य 941330607 मरु भूमि का लोक साँस्कृतिक वैभव, हस्तकलाएँ, शिल्प स्थापत्य, अनूठी पर पराएँ और लोक जीवन अपने आप में विलक्षणताओं भरे कई इन्द्रधनुषों का सदियों से दिग्दर्शन कराता रहा है।
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मरु भूमि का पारम्परिक लोकवाद्य अलगोजा जब कलाकार के होंठों का स्पर्श पाता है तब फ़िजाँ में ऎसी सुरीली तान घुलने लगती है कि सुनने वाला मदमस्त हो प्रकृति और प्रणय के मधुर रसों का आस्वादन करने लगता है।
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दूर-दूर तक पसरे रेतीले धोरों और रेगिस्तान की वजह से जितनी शुष्क है उससे कई गुना जीवन रस भरी सरस और समृद्ध है राजस्थान की मरु भूमि लेकिन यहां के कण-कण में कला-सँस्कृति व सौंदर्य, शिल्प, स्थापत्य और प्राच्य परम्पराओं की सुगंध व्याप्त है।
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दूर-दूर तक पसरे रेतीले धोरों और रेगिस्तान की वजह से जितनी शुष्क है उससे कई गुना जीवन रस भरी सरस और समृद्ध है राजस्थान की मरु भूमि लेकिन यहां के कण-कण में कला-सँस्कृति व सौंदर्य, शिल्प, स्थापत्य और प्राच्य परम्पराओं की सुगंध व्याप्त है।