अरुणा अजितसरिया ने अपनी नम आंखो से कहा कि कहानी के थीम को इतने मर्मस्पर्शी ढंग से चित्रित किया गया है कि यह प्रत्येक घर की कहानी बन गई है।
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**** विशेष: 'बहुत कला ' या कलावाद की अवधारणा और उसके नेपथ्य में मौजूद विचारधारा को शायद ही हमारे वक्त के किसी और कवि ने इतने गहरे और अकाट्य आत्मविश्वास, इतने तार्किक और मर्मस्पर्शी ढंग से ख़ारिज किया हो.
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**** विशेष: ' बहुत कला ' या कलावाद की अवधारणा और उसके नेपथ्य में मौजूद विचारधारा को शायद ही हमारे वक्त के किसी और कवि ने इतने गहरे और अकाट्य आत्मविश्वास, इतने तार्किक और मर्मस्पर्शी ढंग से ख़ारिज किया हो.
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यही नहीं, बल्कि समय के संघटन को, जोकि चेतना में अन्तर्निहित होता है, भंग करते हुए, उसके सारे व्यवहार, सारे क्रियाकलापों को इतनी आत्मीयता से देखा है कि पितृसत्ता को आरोपित करने वाले इस सैनिक तानाशाह की चेतना के अन्तर्निहित विचलन बहुत ही मर्मस्पर्शी ढंग से उभरते हैं।
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अपने पिता को अत्यंत मर्मस्पर्शी ढंग से याद करते हुए युवा नृत्यांगना पुरवा धनश्री ने कहा कि उन्होंने सिखाया कि हर इनसान चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, प्रांत, भाषा, संस्कृति से हो, यूनिक है और इंसानियत, प्यार, श्रद्धा सबसे बड़ा धर्म है।
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यही नहीं, बल्कि समय के संघटन को, जोकि चेतना में अन्तर्निहित होता है, भंग करते हुए, उसके सारे व्यवहार, सारे क्रियाकलापों को इतनी आत्मीयता से देखा है कि पितृसत्ता को आरोपित करने वाले इस सैनिक तानाशाह की चेतना के अन्तर्निहित विचलन बहुत ही मर्मस्पर्शी ढंग से उभरते हैं।
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‘ शमशेर की कहानियाँ ' विषयक आलेख में डॉ. जी. नीरजा ने खासतौर से युद्ध पर केंद्रित शमशेर की कहानी ‘ प्लाट का मोर्चा ' के वस्तु और शिल्प का विश्लेषण किया और बताया कि इतने मर्मस्पर्शी ढंग से महायुद्ध के प्रभाव को चित्रित करनेवाले वे अज्ञेय के बाद अकेले कहानीकार हैं।
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यदि शंबूक प्रसंग को याद करें, जिसे अधिकांश लोग प्रक्षेप मानते हैं, लेकिन जिसके बारे में भवभूति से लेकर भगवान सिंह तक ने मर्मस्पर्शी ढंग से लिखा है, तो उसमें शंबूक का अक्षम्य अपराध यह माना गया था कि वह एकांत वन में मौन ध्यान में लीन थे, जबकि वह शूद्र होने के कारण ब्रह्मोपासना एवं ध्यान करने के अधिकारी नहीं थे।
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यदि शंबूक प्रसंग को याद करें, जिसे अधिकांश लोग प्रक्षेप मानते हैं, लेकिन जिसके बारे में भवभूति से लेकर भगवान सिंह तक ने मर्मस्पर्शी ढंग से लिखा है, तो उसमें शंबूक का अक्षम्य अपराध यह माना गया था कि वह एकांत वन में मौन ध्यान में लीन थे, जबकि वह शूद्र होने के कारण ब्रह्मोपासना एवं ध्यान करने के अधिकारी नहीं थे।