कार्यालय, मंच, रोड, हर जगह सरकार के नुमाइंदों को आम लोगों के सामने हाथ फैलाते देखा जा सकता है!हद तो यह है की शिक्षा के क्षेत्र में भी इन्ही हाथों का फैलाव स्पष्ट दिखता है!हम अच्छे व्यावसायिक शिक्षण संस्थानों में जाने के लिए हम मुहमांगी माँगी कीमत देने को तैयार हैं।
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मंहगाई के इस जमाने में ऐसी है हालत कि राशन की दुकान पर भी नहीं बिकती चाहत मुंह माँगी कीमत देने की होती हैसियत तो फिर क्यों होती सपनों की ऐसी चाहत टूटा हुआ चप्पल, फटी हुई लुंगी बजती जा रही है गरीबों की पुंगी गुलाब मांग तो लें लेकिन कोई स्वीकार नहीं करेगा एक गरीब का गुलाब ऊपर से बिगड़ जायेगा घर का हिसाब बच्चे के खिलौने जैसे हो औने-पौने सब्जी की कटोरी और दाल के दोने सपने बेंच तो लोगे लेकिन खरीदेगा कौन?