स्त्री-स्वातंत्र्य की यदि छवि देखनी हो तो भारत के सुदूर पूर्व के राज्यों के पुराने मातृप्रधान समाज में अथवा ब्रम्हदेश (म्याँमार) के कुछ पहले के जीवन में देखें।
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लीला मेनोन ने जो विशेष बात लिखी है वह यह है कि ज़िंदगी तो ज़िंदगी, मौत को स्वीकार करने में भी नारी को नर की आज्ञा का पालन करना पड़ता है, और वह भी सर्वाधिक साक्षर सभ्य मातृप्रधान समाज में।