सितार की तरह विचित्र वीणा भी उंगलियों में मिज़राब (plectrums) पहनकर बजाया जाता है, तथा मेलडी के लिए शीशे का एक बट्टा मुख्य तारों पर फेरा जाता है।
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सितार की तरह विचित्र वीणा भी उंगलियों में मिज़राब (plectrums) पहनकर बजाया जाता है, तथा मेलडी के लिए शीशे का एक बट्टा मुख्य तारों पर फेरा जाता है।
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इन्द्र इन्द्र के हाथ लम्बे हैं उसकी उँगलियों में हैं मोटी-मोटी पन्ने की अंगूठियाँ और मिज़राब बादलों-सा हल्का उसका परिधान है वह समुद्रों को उठाकर बजाता है सितार की तरह मन्द गर्जन से भरा वह दिगन्त-व्यापी स्वर उफ़!
14.
वे ही मौसम को गीत बनाते जो मिज़राब पहनते हैं विपदाओं की हर ख़ुशी उन्हीं को दिल देती है जो पी जाते हर नाख़ुशी हवाओं की चिंता क्या जो टूटा हर सपना है परवाह नहीं जो विश्व न अपना है तुम ज़रा बाँसुरी में स्वर फूँको तो पपीहा दरवाजे गा ही जाएगा।
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इन्द्र इन्द्र के हाथ लम्बे हैं उसकी उँगलियों में हैं मोटी-मोटी पन्ने की अंगूठियाँ और मिज़राब बादलों-सा हल्का उसका परिधान है वह समुद्रों को उठाकर बजाता है सितार की तरह मन्द गर्जन से भरा वह दिगन्त-व्यापी स्वर उफ़! वहाँ पानी है सातों समुद्रों और निखिल नदियों का पानी है वहाँ और यहाँ हमारे कंठ स्वरहीन और सूखे हैं।
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वे ही मौसम को गीत बनाते ज ो मिज़राब पहनते हैं विपदाओं क ी हर ख़ुशी उन्हीं को दिल देती है ज ो पी जाते हर नाख़ुशी हवाओं क ी चिंता क्या जो टूटा हर सपना ह ै परवाह नहीं जो विश्व न अपना ह ै तुम ज़रा बाँसुरी में स्वर फूँको त ो पपीहा दरवाजे गा ही जाएगा ।
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इस सभा की साज़िशों से तंग आकर, चोट खाकर गीत गाए ही बिना जो हैं गए वापिस मुसाफ़िर और वे जो हाथ में मिज़राब पहने मुश् किलों की दे रहे हैं जिन्दगी के साज़ को सबसे नया स्वर, मौर तुम लाओ न लाओ, नेग तुम पाओ न पाओ, हम उन्हें इस दौर का दूल्हा बनाकर ही उठेंगे।
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विश्व चाहे या न चाहे.... इस सभा की साज़िशों से तंग आक र, चोट खाक र गीत गाए ही बिना जो हैं गए वापिस मुसाफ़ि र और वे जो हाथ में मिज़राब पहने मुश्किलों क ी दे रहे हैं जिन्दगी के साज़ को सबसे नया स्व र, मौर तुम लाओ न ला ओ, नेग तुम पाओ न पा ओ, हम उन्हें इस दौर का दूल्हा बनाकर ही उठेंगे ।