आखिर तिवारी के गैरहिंदी क्षेत्र में इतना लोकप्रिय हो जाने के पीछे क्या है कि कंबार जैसे लेखक ने अध्यक्ष पद के लिए ऐन मौके पर अपना नाम वापस ले लिया? क्या उनका अति विनम्र एवं मिलनसार होना मात्र? अगर यह सौदे बाजी के तहत हुआ है तो अपने आप में कम गंभीर नहीं है।
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भाजपा के इन नेताओं ने साफतौर पर कहा कि भाजपा प्रत्याषी सिर्फ अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए चुनाव लड़ते है उन्हें आम जनता से दूर-दूर तक कोई सरोकार नही रहता, यहाँ तक कि वे क्षेत्र के लोगों को दस साल बाद भी पहचानते तक नही हैं जबकि कांग्रेस प्रत्याषी इसके पहले भी लोगों से मिलते रहे है और सबसे बड़ी बात विकास उपाध्याय में किसी तरह का अहंकार नही है उनके सरल स्वभाव एवं मिलनसार होना ही इस चुनाव में उन्हें भारी बहुमत से जीत दिलाएगी ।