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मिश्रधन उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
11.परिवार क्रमांक तो उस मिश्रधन की तरह है जिसने कभी घटना (कम होना) सीखा ही नहीं।

12.गुणा मूल से गुरू कर, मिले मिश्रधन ब्याज ॥-मेमोरी गुरु रचित साधारण ब्याज की गणनासमय मूल दर प्रतिशत का गुणा।

13.दोनों का उत्तर होगा एक ही स ॥-मेमोरी गुरु रचित मिश्रधन ब्याज की गणनादर प्रतिशत में एक जोड़कर लगा समय की घात।

14.जब समय-समय पर अभी तक संचित हुए ब्याज को मूलधन में मिलाकर इस मिश्रधन पर ब्याज की गणना की जाती है तो इसे चक्रवृद्धि ब्याज कहते हैं।

15.जब समय-समय पर अभी तक संचित हुए ब्याज को मूलधन में मिलाकर इस मिश्रधन पर ब्याज की गणना की जाती है तो इसे चक्रवृद्धि ब्याज कहते हैं।

16.सर, मैं आपको बताऊँ, चाहता तो दो एक पल में अपने लोन पर लगने वाला मिश्रधन मैं पता कर सकता था पर मैं बुरी तरह अकेला पड़ चुका था और डर चुका था।

17.तृष्टिगुण के हिसाब से संतुलन बनाए रखने के चक्कर में व्यक्ति जहां का तहां रह जाता है, अलबत्ता उसका मिश्रधन भारी हो जाता है, किन्तु एक सच्ची कलम एक से पौन का ही व्यापार करती है जबकि उसका स्वाधीन हस्तक्षेप उसकी प्रगामी यात्रा का हार्न देता रहता है ।

18.पंचराशिकादि में फ़ल और हर को अन्योन्य पक्षनयन करने पर इच्छा-पक्ष में फ़ल के चले जाने से इच्छापक्ष बहुराशि और प्रमाणपक्ष स्वल्प राशि माना गया है, प्रक्षेप पूंजी के टुकडे को प्रथक प्रथक मिश्रधन से गुण देना, और प्रक्षेप के योग से भाग देना चाहिये, इससे अलग अलग फ़ल प्राप्त होते है, वापी आदि के पूरण के प्रश्न में अपने अपने अंशो से हर में भाग देना फ़िर उन सबके योग से १ में भाग देने पर वापी भरने का समय का ज्ञान होता है.

19.साधारण गणित में मिश्रधन को इष्ट मानकर इष्टकर्म से मूलधन का पता करे, उसको मिश्रधन से घटाने पर कलान्तर यानी सूद या ब्याज समझना चाहिये, अपने अपने प्रमाण धन से अपने अपने फ़ल को गुणा करना उसमे अपने अपने व्यतीत काल और फ़ल के घात से भाग देना, लब्धि को पृथक रहने देना, उन सब में उन्ही के योग का पृथक पृथक भाग देना, तथा सबको मिश्रधन से गुणा कर देना चाहिये, फ़िर क्रम से प्रयुक्त व्यापार में लगाये हुये धन खण्ड के प्रमाण मालुम चलते है.

20.साधारण गणित में मिश्रधन को इष्ट मानकर इष्टकर्म से मूलधन का पता करे, उसको मिश्रधन से घटाने पर कलान्तर यानी सूद या ब्याज समझना चाहिये, अपने अपने प्रमाण धन से अपने अपने फ़ल को गुणा करना उसमे अपने अपने व्यतीत काल और फ़ल के घात से भाग देना, लब्धि को पृथक रहने देना, उन सब में उन्ही के योग का पृथक पृथक भाग देना, तथा सबको मिश्रधन से गुणा कर देना चाहिये, फ़िर क्रम से प्रयुक्त व्यापार में लगाये हुये धन खण्ड के प्रमाण मालुम चलते है.

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