मुआफ करना फौरी टिप्पणियों की तरह मै देशभक्ति के गीत नहीं गाऊंगा.... न ही तुम्हारी वाह वाही.....
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कम से कम उसका नाम तो पता हो देश को....? मुआफ करना तुम्हारे पोस्ट पे ये सब लिख गया.
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ए-यर बोर्न ट्रेफिक कोप्स (मुआफ करना उडन शील रोबोट्स) अब सीमाओं की चौकसी करेंगें.दो शहरों के बीच माल की आवाजाही का ज़रिया भी बनेंगें ।
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खैर मर गया वो मुंसिफ भी और वो इन्साफ का मसीहा भी... दुनिया की इस रेलमपेल में... खैर बाबा मुआफ करना.... मुझ पर जितने वार करोगे, मैं मरकर हर बार लिखूंगा.
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फिर चाहे ११ / ९ की बगल से मस्जिद बनाओ या कुछ और, क्या फर्क पड़ता है? ए-यर बोर्न ट्रेफिक कोप्स (मुआफ करना उडन शील रोबोट्स) अब सीमाओं की चौकसी करेंगें.
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मुआफ करना दोस्त अब जो मैं बात कहने जा रहा हूँ शायद वो आपके दील के संवेदनशील भाग से गुजरे...हिन्दुस्तान में कभी भी हमने धर्म से अलग होकर नहीं सोचा तर्क की कसौटी भारत में बेअसर है..
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वैसे बारिश से भी इस लड़की का पुराना रिश्ता है... कैसे...? अब सब एक साथ जान लोगे क्या...? अभी तो कई पन्ने भरने हैं... और कहानी का कोई इरा सिरा नहीं... खैर... मुआफ करना मुझे ज़रा बात घुमा फिरा कर करने की आदत है...
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‘ कामगार हूं, तेज तलवार हूं, सारस्वतों (कलम के रखवालों) मुआफ करना, कुछ गुस्ताखी करने वाला हूं '-यह कहते हुए मराठी साहित्य में पचास के दशक में दस्तक देने वाले नारायण सुर्वे का 83 साल की उम्र में पिछले दिनों ठाणे के एक अस्पताल में देहांत हुआ।
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सोचा था, एक बार तुम् हारे चेहरे पर मखमूर नजर डालकर अपनी राह लूँगा पर तुम् हारी इस शोखी ने तो मुझे कहीं का न रखा ; दामन अलग करते ही नहीं बनता, दिल अलग मचल रहा है, तौबातिल् ला मचाये हुए है ; फिर तुम् हीं सोचो इस ‘ मुखमर्दन ' उर्फ ‘ चुम् बन ' (मुआफ करना, हमारा चुम् बन जरा उग्र हुआ करता है) में मेरा क् या कुछ बस है?
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जलती-बुझती सी इस सलाईन की लगी बोतल से पल-पल ज़िन्दगी मांगती हैं तुम्हारी जर्द आँखों में आज मैंने बचपन देखा है.....!! (अस्पताल से-जर्द हुए भाई के लिए) (५) मौत..... व ह.... उतरती रही आँखों से देह तक देह से हड्डियों तक हड्डियों से साँसों तक दर्द की करवटों में ओह पापा....! मुझे मुआफ करना मैंने मौत से आँखें चुराई हैं.....!! (कैंसर से जूझते पिता-ससुर के लिए)