| 11. | “जन मन मंजु मुकुर मल हरनी ।
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| 12. | श्री गुरुचरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारी!
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| 13. | के दबाव से मुकुर की सतह काँपने लगती है;
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| 14. | टूक-टूक ह्वै है मन मुकुर हमारे हाय,
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| 15. | मुकुर तौ पर दीपति को धानी ।
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| 16. | उस मुकुर के होने का ज्ञान है।
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| 17. | किधौं मुकुर मैं लखत उझकि सब निज-निज सोभा ।
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| 18. | टूक-टूक ह्वै है मन मुकुर हमारे हाय,
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| 19. | श्री गुरु चरण सरोज रज निज माने मुकुर सुधारी
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| 20. | मुकुर में मैं अपना चेहरा जब-तब देख लेता हूँ।
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