मौद्रिक नीति साख कोपूर्ति और उसके प्रयोगों को प्रवाहित करके मुद्रा-प्रसार का सामना करकेतथा भुगतान सन्तुलन में साम्यता बनाये रखकर आर्थिक विकास में बड़ी सहायताकरती है.
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(५) यातायात व्यवस्था (ठ्रन्स्पोर्ट् 'ञचिलिटिएस्):--मुद्रा-प्रसार के समयउत्पादन, व्यापार हानि की गतिशीलता आदि सभी क्षेत्रों में होने वालीवृद्धि से यातायात की माँग में वृद्धि होती है.
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आज भी आर्थिक शब्दावली में यह लोकप्रिय है और मुद्रास्फीति (मुद्रा-प्रसार या मनी इन्फ्लेशन) के रूप में आए दिन इसका प्रयोग सामने आता है।
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(२) उत्पादकों के लाभ में वृद्धि (ईन्च्रेअसे इन् फ्रोङिले ओङ्फ्रोडुच्टिओन्)--मुद्रा-प्रसार में मौद्रिक आय में वृद्धि होने से मांग बढ़जाती है, जबकि पूर्ति में तुरन्त वृद्धि होने लगती है.
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(२) निम्न जीवन स्तर [ळोत् ळिविन्ग् श्टन्डर्ड्]:--मुद्रा-प्रसार के समयहालांकि रोजगार में वृद्धि तो होती है लेकिन यह वृद्धि मूल्यों में होनेवाली वृद्धि की अपेक्षाकृत बहुत धीमी होती है.
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इससे उनका आर्थिक-जीवन पिछड़ने लगता है. (५) किसान वर्ग को सीमित लाभ (ळिमिटेड् आड्वन्टगे टोआग्रिचुल्-~ टुरिस्ट्स्):--मुद्रा-प्रसार की स्थिति में कृषि जन्य वस्तुओं केमूल्यों में भी वृद्धि होने लगती है.
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(८) सरकार (घोवेर्न्मेन्ट्):--मुद्रा-प्रसार का काल सरकार के लिए सिर-दर्द काकाल होता है, क्योंकि बढ़ती महँगाई के कारण उन्हें अपने कर्मचारियों कोअधिक वेतन (महँगाई भत्ते को बढ़ाकर) देना पड़ता है.
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" (१२) रोजगार पर प्रभाव (ऐङ्ङेच्ट् ओन् ऐम्प्लोय्मेन्ट्):--मुद्रा-प्रसार के समयअर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों यथा व्यापार, उद्योग, बैंकिंग, बीमा, यातायात आदि का विकास होने के कारण रोजगार के अवसरों में वृद्धि होनेलगती है.
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[२] बचत की प्रवृति को बढ़ावा [ईन्च्रेअसे इन् प्रोपोन्सिट्य् टो सवे] मुद्रा-प्रसार में बढ़ते मूल्यों का लाभ प्राप्त करने के लिये, विनियोगोंको बढ़ावा देने के लिए, जनता बचत को बढ़ावा देती है.
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(५) श्रमिक-वर्ग (थोर्केर्स्):--मुद्रा-प्रसार का श्रमिक वर्ग पर निम्नप्रभाव पड़ता है--(इ) मुद्रा-प्रसार के कारण उद्योगों का विकास होता है, इससे मजदूर केपरिवार के बेरोजगार लोगों के रोजगार प्राप्त होने से उनकी कुल आय बढ़जाती है.